सऊदी अरब को धमकी, दो-दो हाथ क्यों करने को तैयार है अमेरिका?

ओपेक प्लस ने पाँच अक्तूबर को इस बात की घोषणा की थी कि तेल के उत्पादन में प्रति दिन 20 लाख बैरल की कमी की जाएगी लेकिन अमेरिका ने बहुत कोशिश की कि तेल उत्पादन पहले की तरह जारी रहे और उसमें कमी नहीं की जाए, लेकिन सऊदी अरब समेत ओपेक प्लस के देशों ने अमेरिका की मंशा के उलट फ़ैसला किया.

ओपेक प्लस 23 तेल निर्यातक देशों का समूह है। यह समूह मिलकर तय करता है कि विश्व बाजार में कितना तेल का उत्पादन करना है। ओपेक का गठन 1960 में हुआ था। दुनिया का लगभग 30 प्रतिशत कच्चा तेल ओपेक देशों से आता है। सऊदी अरब दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक है, जो रोजाना 10 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन करता है।

CNN को दिए इंटरव्यू में बाइडन ने कहा, "उन्होंने (सऊदी अरब) रूस के लिए जो किया है, उसके कुछ नतीजे होंगे." अमेरिका ओपेक देशों के तेल उत्पादन को कम करने के फ़ैसले को रूस से जोड़कर देख रहा है. लेकिन सऊदी ने एक बयान जारी कर कहा है कि यह फ़ैसला तेल की क़ीमत को स्थिर करने के लिए किया गया है, क़ीमत बढ़ाने के लिए नहीं.

सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने कहा, ''ओपेक प्लस के फ़ैसले के बाद सऊदी अरब को लेकर आए बयानों में कहा गया है कि सऊदी अरब अंतरराष्ट्रीय टकरावों में पक्ष ले रहा है और वो अमेरिका के ख़िलाफ़ राजनीतिक रूप से प्रेरित है.'

''सऊदी अरब इन बयानों को पूरी तरह ख़ारिज करता है, जो तथ्य पर आधारित नहीं है और ओपेक प्लस के फ़ैसले को आर्थिक संदर्भ के इतर दिखाती हैं. ये फ़ैसला समूह के सभी सदस्य देशों ने सर्वसम्मति से किया है. ये फ़ैसला किसी एक देश का नहीं है. ये फ़ैसले आर्थिक आधार पर किए जाते हैं ताकि तेल बाज़ार में मांग और आपूर्ति का संतुलन बना रहे.''

वहीं, सऊदी अरब के विदेश मंत्री फ़ैसल बिन फ़रहान ने अल-अरबिया न्यूज़ चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि तेल उत्पादन कम करने का फ़ैसला पूरी तरह से आर्थिक कारणों पर आधारित है. रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने भी ओपेक प्लस के फ़ैसले का बचाव किया है

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रोफ़ेसर मुक़्तदर ख़ान का कहना है कि ओपेक प्लस के इस फ़ैसले से अमेरिका पर दोहरी मार पड़ी है "रूस अगर इससे कुछ कमाई कर लेगा तो वो उस पैसे का इस्तेमाल यूक्रेन के ख़िलाफ़ जारी जंग में करेगा. दूसरी तरफ़ अगर अमेरिका में तेल की क़ीमत बढ़ती है, तो इसका सीधा असर नवंबर में अमेरिका में होने वाले मिड टर्म चुनाव पर पड़ेगा."

लेकिन क्या अमेरिका का यह आरोप सही है कि सऊदी अरब ने रूस को फ़ायदा पहुँचाने के लिए जान-बूझकर ऐसा फ़ैसला किया

इस सवाल के जवाब में प्रोफ़ेसर मुक़्तदर ख़ान कहते हैं, "यह कहना बिल्कुल ग़लत है. जबसे रूस-यूक्रेन की जंग शुरू हुई है तब से अमेरिका विकासशील और ग्लोबल साउथ के देशों पर दबाव डाल रहा है कि वो यूक्रेन और यूरोप की ख़ातिर क़ुर्बानी दें."