हमारी संस्कृति में मां का दर्जा बहुत ऊंचा है। मां शब्द को बहुत महिमामंडित किया गया है। उसे त्याग की प्रतिमूर्ति माना गया है। अक्सर मां की इर्द गिर्द ही किसी भी परिवार की धुरी घूमती है।
लेकिन यदि बात मां के अधिकारों की आती है तो अधिकांश लोग इससे अनभिज्ञ होते हैं कि मां के क्या अधिकार हैं। स्वयं महिलाएं ही बतौर मां अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं।
यदि आप भी ऐसे ही लोगों में हैं तो आज हम आपको बताएंगे कि एक मां के क्या अधिकार होते हैं? आइए शुरू करते हैं-
हम लोग अक्सर बात करते हैं कि फलां के यह यह अधिकार हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि अधिकार से क्या आशय है? आइए, सबसे पहले यही जान लेते हैं कि अधिकार क्या होता है?
मित्रों, यदि परिभाषा की बात करें तो अधिकार से आशय राज्य द्वारा किसी व्यक्ति को प्रदान की जाने वाली उन सुविधाओं से है, जिनका प्रयोग कर वह अपनी शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक शक्तियों का विकास करता है।
सच तो यह है कि अधिकारों के बिना मानव जीवन के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसीलिए वर्तमान में प्रत्येक राज्य अपने नागरिकों को अधिकार प्रदान करता है।
अधिकार दो प्रकार के होते हैं-नैतिक एवं कानूनी। यहां हम कानूनी अधिकार की बात कर रहे हैं। ये वे अधिकार हैं जो किसी व्यक्ति को कानून द्वारा प्रदान किए गए हैं।
बतौर मां एक महिला का सबसे पहला अधिकार बच्चे को जन्म देने का है। दोस्तों, जान लीजिए कि किसी भी गर्भवती महिला की मर्जी के खिलाफ अथवा उसे बताए बगैर उसका गर्भपात यानी अबॉर्शन (abortion) नहीं कराया जा सकता।
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