Firecrackers History: चीन में बांस से शुरू हुआ था पटाखों का इतिहास, शैतान भगाने के लिए होता था इस्तेमाल, भारत में ऐसे हुई एंट्री

चीन से शुरू हुई पटाखे की कहानी इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो पता चलता है कि दुनिया के पटाखों से रूबरू कराने वाला चीन ही है.

छठी से नौवीं शताब्दी के बीच टांग वंश के समय चीन में ही बारूद की खोज हुई. इतिहासकार बताते हैं कि पटाखे यानी आतिशबाजी की खोज चीन में ही हुई थी.

बारूद के मिलने से पहले भी आतिशबाजी इतिहासकार बताते हैं कि बारूद और पटाखों से पहले भी लोगों को इनका शौक था. लोग तब इस शौक को नेचुरल तरीके से पूरा करते थे.

बताया जाता है कि उस वक्त चीन के लोग बांस में आग लगाते थे और इसमें मौजूद एयर पॉकेट्स फूटने लगते थे. इससे आवाज आती और इस तरफ पटाखों का शौक बिना पटाखों के पूरा हो जाता.

भारत में 1526 में हुई एंट्री  अब बात करें बारूद और पटाखों की भारत में एंट्री की तो यह यहां पर पानीपत की पहली लड़ाई के वक्त यानी 1526 के आसपास आया.

तब इसे अपने साथ मुगल लेकर आए थे. इतिहासकार बताते हैं कि पानीपत की पहली लड़ाई उन युद्धों में से एक है जिसमें बारूद और तोप का इस्तेमाल हुआ. यही वजह थी कि बाबर के आगे इब्राहिम लोधी हार गया.

ऐसे पड़ा पटाखा नाम दरअसल, 19वीं सदी में एक मिट्टी की छोटी मटकी में बारुद भरकर पटाखा बनाने का ट्रेंड था. बारूद भरने के बाद उस मटकी को जमीन पर पटक कर फोड़ा जाता था,

जिससे रोशनी और आवाज होती थी. अनुमान है कि इसी ‘पटकने’ के कारण इसका नाम ‘पटाखा’ पड़ा होगा.