बगैर फंड के कोई कंपनी नहीं चलती। इनीशियल एवं वर्किंग कैपिटल के अलावा भी अपनी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए उसे फंड जुटाना पड़ता है। एक सामान्य सी बात है कि जब किसी भी कंपनी को धन की आवश्यकता होती है तो वह आईपीओ जारी कर धन जुटाती है।

इसके अतिरिक्त वह डिबेंचर यानी ऋण पत्र जारी करके भी अपने लिए आवश्यक फंड एकत्र करती है। क्या आप जानते हैं कि डिबेंचर क्या होते हैं? इसका हिंदी में क्या अर्थ है? यदि नहीं जानते तो भी चिंता की कोई बात नहीं। आज इस पोस्ट में हम आपको डिबेंचर के विषय में आवश्यक जानकारी प्रदान करेंगे।

डिबेंचर (debenture) को हिंदी में ऋण पत्र पुकारा जाता है। डिबेंचर शब्द लैटिन भाषा (latin language) के डिबेयर (debayor) शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है-कर्ज लेना। सामान्य रूप से डिबेंचर अथवा ऋण पत्र एक प्रकार का प्रमाण पत्र है, जिसमें यह जानकारी दी जाती है कि कंपनी निवेशक को एक निश्चित राशि देगी।

इस भुगतान (payment) में मूल राशि पर ब्याज (interest) शामिल होता है। इसके साथ ही मैच्योरिटी (maturity) पर पूंजी (capital) मिलती है। ऐसे में यह ऋण सृजित करने अथवा उसे स्वीकृत करने संबंधी एक दस्तावेज है।

यदि कारपोरेट फाइनेंस (corporate finance) की बात करें तो यह शब्द बड़ी कंपनियों द्वारा पैसे उधार लेने के लिए दीर्घावधि ऋण (long term loan) लिखत के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

कहीं कहीं इस शब्द को बांड (bond), लोन स्टाक ( loan stock) अथवा नोट (note) के लिए अंतरबदल के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसे कंपनी का कर्ज (debt of a company) भी कह सकते हैं।

दोस्तों, आपको बता दें कि डिबेंचर जारी करने की प्रक्रिया (process) बिल्कुल वही है, जो शेयर (share) जारी करने की है। कोई भी डिबेंचर किसी कंपनी की काॅमन सील (common seal) द्वारा ही जारी किया जाता है।

कंपनी को जब भी फंड की आवश्यकता होती है वह अपनी मुहर द्वारा इसके लिए आफर (offer) जारी करती है। ठीक वैसे ही जैसे वह शेयर के लिए आफर जारी करती है। इसमें डिबेंचर से जुड़े सभी नियम-शर्तों का उल्लेख रहता है।

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